वहीं 1995 में मौलाना इनामउल हसन का इंतकाल हुआ, जिसके बाद तब्लीगी जमात के प्रमुख बनने को लेकर विवाद भी हुआ था। 2015 में मौलाना जुबैर का इंतकाल होने पर कमेटी में अब्दुल वहाब ही बचे। खाली पदों को भरने के लिए भी विवाद हुआ और दो गुट बन गए। दूसरे गुट ने अलग होकर तुर्कमान गेट पर मस्जिद से जमात का काम शुरू कर दिया। तब से मौलाना साद ही तब्लीगी जमात के प्रमुख की जिम्मेदारी संभालते रहे।

वहीं 1995 में मौलाना इनामउल हसन का इंतकाल हुआ, जिसके बाद तब्लीगी जमात के प्रमुख बनने को लेकर विवाद भी हुआ था। 2015 में मौलाना जुबैर का इंतकाल होने पर कमेटी में अब्दुल वहाब ही बचे। खाली पदों को भरने के लिए भी विवाद हुआ और दो गुट बन गए। दूसरे गुट ने अलग होकर तुर्कमान गेट पर मस्जिद से जमात का काम शुरू कर दिया। तब से मौलाना साद ही तब्लीगी जमात के प्रमुख की जिम्मेदारी संभालते रहे।


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दरअसल, तब्लीगी जमात की शुरुआत 1927 में बताई जाती है। दिल्ली के निजामुद्दीन क्षेत्र में इसका मरकज (अंतरराष्ट्रीय केंद्र) है, जहां से दुनियाभर के लिए जमात भेजी जाती हैं। तब्लीगी जमात के अमीर मौलाना साद मूल रूप से शामली के कांधला कस्बा निवासी हैं। पूर्व में मौलाना साद के परदादा मौलाना इलियास, फिर मौलाना यूसुफ और 1965 में मौलाना यूसुफ का इंतकाल होने के बाद मौलाना इनामउल हसन ने तब्लीगी जमात की जिम्मेदारी संभाली। मौलाना इनामउल हसन ने 1993 में दस सदस्यों की कमेटी बनाई, जिसमें अलग- अलग देशों के लोगों को शामिल किया। भारत से मौलाना इनामउल हसन, मौलाना साद, मौलाना जुबैर और मौलाना अब्दुल वहाब को जगह दी गई थी।
कांधला निवासी मौलाना राशिद कांधलवी बताते हैं कि 1938 में तब्लीगी जमात की शुरुआत हुई थी। तब कांधला और थानाभवन के अलावा रामपुर के लोग इसमें शामिल हुए थे। सबसे पहली जमात कांधला के लोगों की ही निकाली गई थी। उन्होंने कांधला में आकर जमात का कार्य किया था।